रमाकांत पांडे ब्यूरो चीफ बेनकाब भ्रष्टाचार अंबेडकर नगर *रमजान के व्यंजनों में आधुनिक स्वाद*

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रमाकांत पांडे ब्यूरो चीफ
बेनकाब भ्रष्टाचार
अंबेडकर नगर
*रमजान के व्यंजनों में आधुनिक स्वाद*
अम्बेडकरनगर।रमजान में भूखे-प्यासे रहने के बाद इफ्तार में रोजा खोलने की परंपरा है। इफ्तार में पौष्टिक व सुपाच्य आहार जैसे बिरयानी, शामी कबाब, ब्रेड और मक्खन, आलू पैटीज, आलू कचालू, केला और खजूर खाने का रिवाज है। जिससे शरीर को किसी प्रकार की दिक्कत न हो। इन दिनों पिज्जा, बर्गर, फ्रेंच फ्राइज, चाऊमीन और पैन केक सहित कई आधुनिक व्यंजन दिखाई देते हैं। युवा रोजेदार अपनी पसंद की चीजें अधिक खाते हैं। महंगाई का पड़ रहा असर रोजेदार सुबह सहरी करके रोजा शुरू करते हैं। जबकि शाम को इफ्तार के साथ रोजा खोलते हैं। रोजे और सहरी में इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुएं आम रोजेदारों की पहुंच से दूर होती दिखाई दे रही है। रोजा रखना हर मुसलमान का फर्ज है। रमजान के दिनों में इफ्तार के समय विभिन्न व्यंजनों, फलों, मेवा, मिष्ठान और लजीज खाद्य पदार्थो से सजा रहने वाला दस्तरखान महंगाई के चलते सिमट गया है। रमजान के दिनों में एक-दूसरे को रोजा खोलने और खुलवाने का अपना ही महत्व है। रोजा खुलवाने, मुसाफिरों, गरीबों के लिए मस्जिदों में इफ्तार की कमी नहीं रहती। मगर घरों में रोजा खोलने वालों पर महंगाई का पूरा असर दिख रहा है। चीनी, दूध से हरी सब्जी, घी, तेल, फलों और रोजे के दौरान इफ्तार में अपना अलग महत्व रखने वाला खजूर आदि की कीमत इस वर्ष दुगनी हो गई है। मदनगढ़ निवासी इमरान का कहना है कि उनका संयुक्त परिवार है, जिसमें 14 सदस्य हैं। लगभग सभी रोजा रख रहे हैं। लेकिन, महंगाई के चलते सभी के पसंद के खाद्य पदार्थ इफ्तार के समय रखना नामुमकिन हो रहा है।आपको बताते चलें जब रमजान का महीना शुरू होता है तो जहन्नुम के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं। यह नेकियों का महीना है, जिसमें मुस्लिम रोजा रखने के अलावा कुरान की तिलावत पूरी मेहनत से करते हैं। माना जाता है कि रोजेदार जितना कुरान पढ़ेंगे, उतना पुण्य होगा, गुनाह माफ़ होंगे और जन्नत के हकदार बनेंगे। रोजे 30 दिन के भी हो सकते हैं और 29 दिन के भी। ये बात भी चांद पर ही निर्भर करती है कि वह कब अपना दीदार कराता है। जिस रात को चांद दिखता है उससे अगली सुबह ईद का दिन होता है। पाक क़ुरान जो मुस्लिमों का धर्मग्रंथ है, वह भी इसी महीने में उतरा। यह बातें अर्शी मौलाई ने आयोजित मजलिस में कहीं। उन्होंने कहा कि ये वह महीना है, जब इंसान अल्लाह के करीब आ जाता है। क्योंकि वह नेक अमल अंजाम देता है। गुनाहों से बचने की कोशिश करता है, क्योंकि झूठ बोलने से भी रोजा नहीं होता। ऐसे में मुसलमान चाहता है कि जब वह पूरे दिन भूखा-प्यासा रहा ही है, तो क्यों न उसका रोजा भी पूरा हो जाए।रोजेदार के सामने कुछ भी नहीं खाना चाहिए। मौलाना अर्शी ने बताया कि रमजान का महीना रोजेदारों के लिए आत्म नियंत्रण और संयम का महीना माना जाता है। इस महीने की गईं नेकियों का फल जल्दी मिलता है। रमजान का ये महीना मुसलमानों को खुद पर नियंत्रण रखने की सीख देता है। इस वजह से ये बात सही है कि रोजेदारों के सामने कुछ खाना नहीं चाहिए।

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