दोस्तों, आइए हम आज इस बारे में चर्चा करें कि क्या हमारे देश के समाचार चैनलों को कुछ काम बंद करने की आवश्यकता है? मेरा मतलब है कि भारतीय समाचार चैनलों ने अंतत: हमें जागृत किया है और मुख्य समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता पैदा की है जिसे हम उपेक्षित कर देते हैं। हालांकि, जब यह उनकी अत्यधिकता हो जाती है तो समस्या उत्पन्न होती है। अकसर, समाचार चैनलों द्वारा बिना किसी जांच-पड़ताल के जल्दी-बाजी में सूचना प्रकाशित करने से भ्रम और आंतधुंध सोच पैदा हो जाती है। ऐसे में, निष्पक्ष, सत्यापित और न्यायोचित सूचनाओं की महत्वता अभूतपूर्व होती है।
जब हम टीवी चालू करते हैं और समाचार चैनल स्विच करते हैं, तो हम यदि उम्मीद करते हैं कि खुद को अद्यतित रखने के लिए वे समय-समय पर और यथार्ध सूचनाएँ प्रदान करेंगे। हम आशा करते हैं कि हमें उनके विचारों, भावनाओं या अभिप्रेत उद्देश्यों को देखने के लिए वे पर्दा नहीं दिखाएंगे। हम उनसे न्यूज़ से ज्यादा न होने की आशा करते हैं। क्या सभी भारतीय समाचार चैनलों को यह सुनिश्चित करना/बंद करना चाहिए कि उनके पास ऐसी सूचनाएँ हैं जो उनकी दर्शकों की उम्मीदों को पूरा करती हैं?
कई बार, हम देखते हैं कि समाचार चैनलों का अधिकांश समय तथ्यों और सूचनाओं के बजाय मनोरंजन में लगा रहता है। यहां तक भारतीय समाचार चैनलों के दर्शनीयता को बढ़ाने के लिए '20 फीसदी समाचार, 80 फीसदी मनोरंजन' एक नहीं-सहिष्णुता वाली चर्चित मुहावरा बन चुका है। चैनलों का यह पेशेवर बदलाव उनकी प्रामाणिकता और विश्वसनीयता को प्रश्नचिह्नों में धकेलती है, और दर्शकों के सामर्थन की जरूरत है, जो खोजने के लिए टेलीविजन सूचना मीडिया की ओर दौड़ते हैं। सामान्यत: इसे द्विभाषित मसाले के समाचार पर सीमित किया जाता है, जहां इस्तेमाल होने वाली भाषा, गेंदबाजी, और घटनाक्रम दर्शकों को बहकाने और टून इन करने के लिए उत्साहित करते हैं।