अगर आपने कबड्डी सुनी है तो अफगान कबड्डी के बारे में सोचा होगा कि क्या इसमें कुछ अलग है। दरअसल, अफगान कबड्डी भी वही पैरावन, झपट्टा और टैग वाली खेल है, लेकिन इसमें कुछ स्थानीय नियम और शैली मिले हैं जो इसे खास बनाते हैं। चलिए, इसे आसान अंदाज़ में समझते हैं।
अफगानिस्तान में कबड्डी का खेल अब सदी के शुरुआती सालों से चलता आ रहा है। ग्रामीण इलाकों में लड़के‑लड़कियों ने यह खेल मस्ती के लिए शुरू किया और धीरे‑धीरे राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा बन गई। 1970 के दशक में अफगान कबड्डी संघ की स्थापना हुई और पहला राष्ट्रीय टूर्नमेंट 1978 में आयोजित हुआ। तब से हर दो‑तीन साल में इसका बड़ा इवेंट होता आया है।
ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो अफगान कबड्डी ने युद्ध‑काल में सैनिकों की फिटनेस और टीम सिंगनल को बढ़ावा दिया। इसलिए इसे ‘वीरता का खेल’ भी कहा जाता है। आज भी इस खेल में तेज़ी, सहनशक्ति और टीम वर्क को बहुत महत्व दिया जाता है।
अफगान कबड्डी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी जगह बना ली है। एशिया कबड्डी फ़ेडरेशन में अफगान टीम नियमित रूप से भाग लेती है। 2010 में एशिया कप में उन्होंने अपने पहले पदक (ब्रॉन्ज) जीते थे, जो इस खेल के विकास का बड़ा संकेत था।
ऑफ़लाइन और ऑनलाइन दोनों प्लेटफ़ॉर्म पर अफगान कबड्डी के मुकाबले लाइव स्ट्रीम होते हैं। भारतीय और पाकिस्तानी टीमों के साथ अक्सर मॅचेस होते हैं, जिससे दर्शकों को एक नई ऊर्जा मिलती है। इस वजह से सोशल मीडिया पर ‘अफगान कबड्डी’ टैग बहुत ट्रेंड करता है।
अगर आप इस खेल को देखना चाहते हैं, तो अधिकांश एशिया कबड्डी फेस्टिवल के शेड्यूल में अफगान टीम के मैच चेक कर सकते हैं। कई बार टूर्नामेंट के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं, जहाँ अफगान संगीत और नृत्य को भी देखा जा सकता है।
अब बात करते हैं नियमों की। मूल कबड्डी के नियम जैसे कि ‘खिलाड़ी को बिना श्वास रोके 20 सेकंड तक टच करना’, ‘रेड कार्ड’ आदि अफगान कबड्डी में भी लागू होते हैं। लेकिन यहाँ कुछ अतिरिक्त नियम हैं:
ये नियम खेल को तेज़ और रोमांचक बनाते हैं। साथ ही, अफगान कबड्डी में ‘मर्द बंधु’ (सहयोगी) की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उनका सहयोग से ही रैम्पेज से बचाव संभव होता है।
अगर आप इस खेल को सीखना चाहते हैं, तो स्थानीय जिम या खेल क्लब में अस्किल कोच की मदद ले सकते हैं। अधिकांश बड़े शहरों में ‘कबड्डी अकादमी’ खुले हैं जहाँ आप बुनियादी तकनीक, श्वास नियंत्रण और टीम प्ले सीख सकते हैं। एक बार अभ्यास शुरू करने से आपका फिजिकल फिटनेस भी बेहतर हो जाएगा।
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बुलंदशहर के बुग्रासी में खेल ढांचे की कमी ने युवा खिलाड़ियों की राह रोक दी है। सैकड़ों साल पुरानी अफगान कबड्डी बंद है, जबकि वॉलीबॉल-फुटबॉल निजी मैदानों तक सिमट गए हैं। कोचिंग के लिए युवाओं को दूर जाना पड़ता है। नगर पालिका जमीन की कमी और अतिक्रमण हटाने की चुनौती मानती है, और जमीन मिलते ही सरकारी मदद से मैदान बनाने का आश्वासन देती है।
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