रमाकांत पांडे ब्यूरो चीफ
बेनकाब भ्रष्टाचार
अंबेडकर नगर
*कोरोना संक्रमण होने की शंका से तरबूज के भाव घटे, किसान परेशान*
अम्बेडकरनगर।टांडा सरयू नदी की रेत पर बड़े पैमाने पर खरबूज तरबूज खीरा ककड़ी की खेती होती है। इस बार फसल तो अच्छी हुई लेकिन कोरोना काल की महामारी में खरबूज तरबूज को लेने वाले भी पीछे हट गए, जिसकी वजह से यह फल कौड़ी के दाम बिकने लगे। फिर भी उन्हें खरीदने वाले लोग दिख ही नहीं रहे हैं। 25 रुपये तक बिकने वाले तरबूज को लोग 5 रुपये में भी नहीं खरीद रहे हैं।कोरोना बीमारी के शुरू होने के समय ही यह फल तैयार हो गए थे। लॉकडाउन ने पहले तो इनकी बिक्री प्रभावित की लेकिन जब यह बिकने लगे तो लोग इन्हें खाने से डरने लगे। जुखाम बुखार से पीड़ित लोगों को खरबूज तरबूज को खाने से डॉक्टर मना करने लगे। डॉक्टर यह बताते रहे कि यह फल कुछ ठंडे होते हैं इसलिए इनका सेवन कोरोना के समय में न किया जाए तो बेहतर होगा। अब जब कोरोना की महामारी कम हुई तो इस फल की बिक्री तेज होनी चाहिए थी। खरबूज, तरबूज की बिक्री तेज होने के बजाय इस समय एकदम मंदी हो गई। इसके पीछे वजह यह बताई जाती है सरयू नदी के किनारे कोरोना से मरने वालों का अंतिम संस्कार भी खूब हुआ है। अंदाजा तो यहां तक लोग लगाते हैं कि कोविड के मरने वाले कुछ लोगों का अंतिम संस्कार काफी आनन-फानन में किया जाता रहा, जिनके अधजले शरीर को सरयू नदी में ही समाहित कर दिया जाता था। अब अंदाजा यह लगाया जाता है कि सरयू नदी के इस जल से ही खरबूजा खरबूजा के फसल की सिंचाई भी की जाती रही है। लोगों का मानना रहा कि इस फसल तक कोरोना वायरस के पहुंचने की संभावना भी बनने लगी। बस क्या था लोगों ने खरबूज तरबूज को खरीदना ही लगभग बंद कर दिया।दाम में आ गई गिरावट: 20 से 25 रुपए किलो बिकने वाले तरबूज की कीमत महज 5 रुपए किलो पहुंच गई। वहीं खरबूजा 15 से 20 रुपए किलो बिकने लगा। इतना सस्ता होने के बावजूद भी इसके खरीदने वाले दिख नहीं रहे हैं। बात सिर्फ खरबूजा, तरबूज की ही नहीं है बल्कि सरयू नदी की रेत पर लौकी, खीरा, ककड़ी जो बड़े पैमाने पर हो रही है, उसकीखरीदारी से भी लोग बचने लगे हैं।
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