देवांश तिवारी जिला संवाददाता बेनकाब भ्रष्टाचार अंबेडकर नगर *वासंतिक नवरात्र पर्व के सातवें दिन श्रद्धालुओं ने मां दुर्गा के सातवे स्वरूप देवी कालरात्रि की विशेष पूजा-अर्चना की*

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देवांश तिवारी जिला संवाददाता
बेनकाब भ्रष्टाचार
अंबेडकर नगर
*वासंतिक नवरात्र पर्व के सातवें दिन श्रद्धालुओं ने मां दुर्गा के सातवे स्वरूप देवी कालरात्रि की विशेष पूजा-अर्चना की*
अंबेडकरनगर। वासंतिक नवरात्र पर्व के सातवें दिन श्रद्धालुओं ने मां दुर्गा के सातवे स्वरूप देवी कालरात्रि की विशेष पूजा-अर्चना की। सुबह से ही मंदिरों में पूजा-अर्चना का दौर शुरू हो गया, जो देर शाम तक चलता रहा। इस बीच श्रद्धालुओं ने मंदिरों में मां के चरणों में पुष्प अर्पित किए। साथ ही माथा टेककर मन्नतें भी मांगीं। इसके अलावा घरों पर भी पूजन-अर्चन का दौर पूरे दिन चलता रहा। इस दौरान मंदिरों में कोरोना संक्रमण को देखते हुए विशेष व्यवस्था की गई थी। मुख्य गेट पर ही सैनिटाइजर की व्यवस्था की गई थी, वहीं मास्क भी उपलब्ध कराए गए। वासंतिक नवरात्र पर्व जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे पूजन-अर्चन का दौर भी तेज होता जा रहा है। रविवार को नवरात्र पर्व के छठे दिन मां दुर्गा के प्रमुख स्वरूप कालरात्रि देवी की विशेष पूजा श्रद्धालुओं ने मंदिरों में पहुंचकर की। सुबह से ही पूजा-अर्चना का जो दौर शुरू हुआ, वह देर शाम तक जारी रहा। घर व मंदिरों में हो रहे मां के जयकारों से समूचा माहौल इस बीच भक्तिमय हो गया। चाहे युवा हो या वृद्ध, या फिर महिलाएं हों, सभी मां की भक्ति में पूरी तरह से सराबोर दिखे। युवाओं ने भी बढ़-चढ़कर इस दौरान विशेष पूजा-अर्चना की। साथ ही मां के चरणों में पुष्प अर्पित कर माथा टेककर मन्नतें मांगीं। इस दौरान जगह-जगह देश को कोरोना से मुक्त करने के लिए विशेष मन्नत भी मांगी गई।मां दुर्गाजी की सातवीं शक्ति देवी कालरात्रि की पूजा नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं अर्थात इनकी पूजा से शनि के दुष्प्रभाव दूर होते हैं। मां कालरात्रि को यंत्र, मंत्र और तंत्र की देवी भी कहा जाता है।ऐसा है इनका स्वरूप पुराणों के अनुसार देवी दुर्गा ने राक्षस रक्तबीज का वध करने के लिए कालरात्रि को अपने तेज से उत्पन्न किया था। इनकी उपासना से प्राणी सर्वथा भय मुक्त हो जाता है। इनके शरीर का रंग घने अन्धकार की तरह एकदम काला है और सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में बिजली की तरह चमकने वाली माला है व इनके तीन नेत्र हैं जो ब्रह्माण्ड के समान गोल हैं। इनसे विद्युत के सामान चमकीली किरणें प्रवाहित होती रहती हैं। इनकी नासिका के श्वास से अग्नि की भयंकर ज्वलाएं निकलती रहती हैं एवं इनका वाहन गर्दभ है। इनके ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं तथा दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खडग धारण किए हुए हैं। मां कालरात्रि का स्वरुप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम शुभंकरी भी है अतः इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है। दुर्गा पूजा के दिन साधक का मन ‘सहस्त्रार चक्र’ में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्माण्ड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूरी तरह से माँ कालरात्रि के स्वरुप में स्थित रहता है। उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह भागी हो जाता है एवं उसके समस्त पापों-विघ्नों का नाश हो जाता है। मां कालरात्रि के स्वरुप विग्रह को अपने ह्रदय में स्थित करके मनुष्य को एकनिष्ठ भाव से उनकी उपासना करनी चाहिए एवं मन, वचन, काया की पवित्रता रखनी चाहिए। यह शुभंकरी देवी हैं इनकी उपासना से होने वाले शुभों की गणना नहीं की जा सकती। पूजा से नकारात्मक शक्तियां होती हैं दूर माता कालरात्रि अपने उपासकों को काल से भी बचाती हैं अर्थात उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती। इनके नाम के उच्चारण मात्र से ही भूत, प्रेत, राक्षस और सभी नकारात्मक शक्तियां दूर भागती हैं। माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं एवं ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासक को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते अतः हमें निरंतर इनका स्मरण, ध्यान और पूजन करना चाहिए। सभी व्याधियों और शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिए माँ कालरात्रि की आराधना विशेष फलदायी है। कलश पूजन करने के उपरांत माता के समक्ष दीपक जलाकर रोली, अक्षत, फल, पुष्प आदि से पूजन करना चाहिए। देवी को लाल पुष्प बहुत प्रिय है इसलिए पूजन में गुड़हल अथवा गुलाब का पुष्प अर्पित करने से माता अति प्रसन्न होती हैं। मां काली के ध्यान मंत्र का उच्चारण करें, माता को गुड़ का भोग लगाएं तथा ब्राह्मण को गुड़ दान करना चाहिए। ध्यान मंत्र-एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणीवामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

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